रामटेक – राजू कापसे
रामटेक : तहसील की गुगुलडोह (मानेगांव) में प्रस्तावित मैंगनीज खदान को लेकर सोमवार को जनसुनवाई हुई। स्थानीय लोगों, नेताओं एवं एनजीओ प्रतिनिधियों ने प्रस्तावित खदान का जमकर विरोध किया। उन्होंने प्रस्तावित प्रोजेक्ट के विरोध में कई तर्क दिए। कुछ मिलीजुली राय भी सामने आई।
जनसुनवाई करीब तीन घंटे चली। राजनीतिक क्षेत्र से प्रमुख रूप से पूर्व विधायक एवं भाजपा नेता डीएम रेड्डी, कांग्रेस नेता उदयसिंह उर्फ गज्जू यादव, प्रहार संगठन के रमेश कारामोरे, भाजपा के राजेश ठाकरे एवं शिवसेना के संजय झाड़े, विकेंद्र महाजन उपस्थित रहे।
प्रस्तावित प्रोजेक्ट के विरोध में कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने वाली एनजीओ अजनिवन की अनुसया काले, डॉ. जयदीप दास, श्री देशपांडे की उपस्थिति रही। इनके अलावा स्थानीय सौंदर्य सृष्टि संस्था के ऋषि किंमतकर, तिरबुड़े एवं गौरव अग्रवाल मौजूद रहे।
जनसुनवाई के लिए अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी सुभाष चौधरी, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल (एमपीसीबी) की प्रादेशिक अधिकारी हेमा देशपांडे, उपप्रादेशिक अधिकारी राजेंद्र पाटील उपस्थित थे। इनके अलावा रामटेक की एसडीएम वंदना सवरंगपते एवं थानेदार हृदयनारायण यादव भी उपस्थित रहे।
आखिरी के आधे घंटे में उस समय जमकर हंगामा हुआ, जब प्रकल्प प्रस्तावक मेसर्स शांति जीडी इस्पात एंड पावर प्रा. लि. के अध्यक्ष एसके पांडे ने कहा कि प्रस्तावित प्रोजेक्ट क्षेत्र में पेड़ों की गणना नियमानुसार की गई है। यह गणना स्थानीय ग्रामीणों की मदद से हुई है। करीब 36 हजार पेड़ों पर नंबर लिखे गए हैं। इस पर पूर्व उपसभापति उदयसिंह उर्फ गज्जू यादव ने कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा प्रोजेक्ट के कारण दो लाख पेड़ काटे जाने की आशंका है।
इसके बाद ग्रामीणों और राजनीतिक लोगों ने प्रस्तावित प्रोजेक्ट के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। । भारी हो-हंगामे के बीच अधिकारियों ने जनसुनवाई के समापन की घोषणा कर दी।
आदिवासियों को दो-चार एकड़ मुश्किल, निजी कंपनी को 450 एकड़ दे रहे : यादव
जनसुनवाई में कई प्रतिनिधियों ने विचार व्यक्त किए। कई ने अधिकारियों को निवेदन-पत्र दिया। गज्जू यादव ने सवाल उठाया कि 2018 के प्रस्ताव को दोबारा क्यों लाया जा रहा है? जबकि इस प्रस्ताव की अवधि 2021 में समाप्त हो चुकी है। यादव ने पूछा कि गुगुलडोह में खदान के लिए सरकारी कंपनी का प्रस्ताव भी आया था। उस पर किसी जनप्रतिनिधि ने फॉलोअप नहीं लिया। अब किसके राजनीतिक दबाव में निजी कंपनी को मंजूरी देने की होड़ लगी है? अगर सरकारी कंपनी खदान लेती तो किसानों को पूरा मुआवजा एवं उनके परिजनों को अच्छी नौकरी एवं स्वास्थ्य सुविधा मिलती। यहां तो एक-दो लोगों के लाभ के लिए पूरा जंगल तबाह करने की कोशिश की जा रही है। वन्यप्राणी जंगल छोड़कर कहां जाएंगे?
गज्जू यादव ने यह भी कहा कि किसी भी खदान की लीज नीलामी के आधार पर दी जाती है। गुगुलडोह के मामले में यह अस्पष्ट है। आज जबकि आदिवासियों को खेती की दो-चार एकड़ जमीन का पट्टा तक आसानी से नहीं मिलता, तब किसी प्राइवेट कंपनी को 450 एकड़ का 200 साल पुराना जंगल क्यों सौंपने की जिद है?
पुरानी खदानें बंद कीं, नए पर जोर क्यों : रेड्डी
भाजपा नेता एवं पूर्व विधायक डीएम रेड्डी ने कहा कि गुगुलडोह के मामले में वन अधिकार कानून का पालन नहीं हो रहा। उन्होंने सवाल उठाया कि इस कानून के कारण कई पुरानी खदानें बंद कर दी गईं। ऐसे में नई खदानों में रुचि क्यों ली जा रही है? अन्य लोगों ने भी राय व्यक्त की।
एनजीओ ने कहा – सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन हो
एनजीओ प्रतिनिधि जयदीप दास ने कहा कि एक रात में जंगल तैयार नहीं कर सकते। गुगुलडोल का पर्यावरण मूल्यांकन नहीं किया गया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन होना चाहिए। अनुसया काले ने कहा कि गुगुलडोह में कई लोग मटके आदि बनाकर आजीविका चलाते हैं।