नागपूर – शरद नागदेवे
भाषा केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं है बल्कि संस्कृति और सभ्यता के संवर्धन का आधार है । भाषा के बिना संस्कृति की कल्पना नहीं की जा सकती। यह बात मराठी भाषा और साहित्य के वरिष्ठ विचारक प्रो. वी.स. जोग ने महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा एवं हिंदी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ के अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि मातृभाषा हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का कार्य करती है।
डॉ. विजयपाल तिवारी ने भारतीय भाषाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मातृभाषा हमारे समग्र और सतत विकास के लिए अत्यावश्यक है । बदलते दौर में मातृभाषा को हमारी शिक्षा का आधार बनाया जाना जरूरी है। आज इस दिशा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रयास चल रहा है, जो मातृभाषा के संवर्धन की प्रेरणा देता है।
प्रसिद्ध रंगकर्मी किशोर लालवानी ने अपने उद्बोधन में सिंधी भाषा की उत्पत्ति और हिंदी के विकास में उसकी महत्ता बताते हुए कहा कि हमारी सभी मातृभाषाएं हमें एक होने का संदेश देती हैं। सभी मातृ भाषाओं में भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का परिचय मिलता है।
कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पांडेय ने कहा कि आज वैश्विक स्तर पर बदलते समय के अनुरूप शिक्षा में मातृभाषा पर बल दिया जा रहा है । मातृभाषाएं ही हमारी बहुभाषीय अस्मिता को बचाए और बनाए रखने का आधार हैं। भाषा बचे रहने पर ही संस्कृति के जीवित रहने की कल्पना की जा सकती है।
धन्यवाद ज्ञापित करते हुए महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा के अध्यक्ष श्री अजय पाटिल ने कहा कि व्यक्ति की पहचान उसकी भाषा होती है।
भाषा हमें हमारी मां से प्राप्त होती है । हमारी मातृभाषा हमें अपने परिवार, समाज, राष्ट्र से जोड़ने का माध्यम बनती है।इस अवसर पर आमंत्रित अतिथियों का स्मृति चिह्न प्रदान कर सत्कार किया गया। कार्यक्रम में डॉ. जयप्रकाश, श्री अनिल तिवारी,श्री शरद नागदेवे, श्री राजेश कुंभालकर, श्री तनुज चौबे, श्रीमती प्रभा मेहता, श्री नरेंद्र परिहार, डॉ इंद्रजीत ओरके, श्री अविनाश बागड़े , हेमलता मिश्र मानवी, श्रीमती माधुरी मिश्रा, साक्षी लालवानी, श्री अनिल मलोकर सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित थे।